
नगर निगम भोपाल की बजट बैठक में प्रशासनिक अपराध के कारक रहे आयुक्त
भोपाल। नगर पालिक निगम भोपाल में गुरूवार 3 अप्रैल को परंपरानुसार महापौर श्रीमती मालती राय ने अपने कार्यकाल का तीसरा वर्ष 2०25-26 के लिए अनुमानित बजट परिषद की बैठक में प्रस्ताव पास कराने हेतु प्रस्तुत किया। जैसा कि परंपरा अनुसार पक्ष और विपक्ष के नगर सेवक अर्थात पार्षद किसी विषयवस्तु पर चर्चा करते हैं और जो जनसमस्याएं होती हैं उनके समाधान की कोशिश निगम के कर्मचारियों अधिकारियों के माध्यम से की जाती है और जो शहर के लिए नया कार्य या प्रयोजन करने की इच्छा होती है अथवा विभाग द्वारा या शासन द्वारा किसी परियोजना या लोक कल्याणकारी कार्य के लिए प्रस्ताव आता है तो उस पर सभी नगरसेवकों /सदस्यों के द्वारा विस्तृत चर्चा करने के बाद उसे बहुमत के आधार पर अथवा सर्वसम्मति से पारित कर अनुमोदित कर दिया जाता है।
निगम परिषद की बजट बैठक में महत्वपूर्ण विषय बजट तो था ही परंतु इसके विपरीत पूरे सदन की कार्यवाही में प्रारंभ से अर्थात प्रात: 11 बजे से लेकर परिषद की कार्यवाही समाप्त होने तक अर्थात सायं लगभग 8 बजे तक पूरे समय नगर निगम आयुक्त हरेन्द्र नारायन सिंह और उनकी जनविरोधी कार्य प्रणाली पर प्रश्न उठते रहे। एक पार्षद ने बताया कि जनता जल कर तो बराबर दे रही है परन्तु उनके क्षेत्र में दो-दो दिन पानी नहीं आता है आता भी है तो पीने लायक नहीं होता, बहुत गंदा होता है, पीने लायक नहीं होता है, तो एक पार्षद ने आरोप लगाया कि बरसात से पूर्व निगम ने ठेकेदार से जो नाले की सफाई कराई थी,वह गाद मिट्टी निकाली गई थी उसे वर्षा काल में फिर पानी के स्रोतों में छोड़ दिया गया अर्थात गंदगी पूर्ववत हो गई और भुगतान ठेकेदार को हो गया अधिकारियों से शिकायत की गई परन्तु कोई कार्यवाही नहीं हुई ,तो वही एक जोन अध्यक्ष ने खुला आरोप लगाया कि लाखों रुपए की स्टेशनरी और फर्नीचर वार्ड/जोन कार्यालय के लिए खरीदा गया,उसका भुगतान हो गया परन्तु सामग्री आज तक नहीं आई है अर्थात उसकी राशि का सीधा-सीधा गबन कर लिया गया है,तो वही कई जनप्रतिनिधियों ने आरोप लगाये कि महापौर ही नहीं सभी परिषद के सदस्य भी भ्रष्टाचार से परेशान हैं ,इसमें नगर निगम के जोनल अधिकारी हो अथवा विभागों के मुखिया न जनता से जुड़े काम करते हैं ना पार्षदों के फोन
उठाते हैं अर्थात कहा जा सकता है कि नगर निगम आयुक्त हरेंद्र नारायण सिंह ही इस सभी के जिम्मेदार हैं। यह कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि किसी भारतीय प्रशासनिक सेवा अथवा राज्य प्रशासन सेवा के अधिकारी के विरुद्ध नगर निगम के चुने हुए प्रतिनिधि कोई भी कार्यवाही नहीं कर सकते केवल शासन को प्रस्ताव भेज सकते हैं। उसकी अनियमितता कदाचरण की शिकायत शासन को कर सकते हैं परंतु कोई भी कार्यवाही स्वयं नहीं कर सकते। यह भारतीय प्रशासन सेवा का हर अधिकारी अच्छी तरह जानता है। यही कारण है कि मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के नगर निगम में व्याप्त भ्रष्टाचार, आर्थिक अपराध,जानबूझकर कार्य में लापरवाही सहित चुने हुए जनप्रतिनिधियों का अपमान,पद का दुरुपयोग,शासकीय धन का गबन जैसे गंभीर आरोपों के साथ-साथ में हाथों में दस्तावेजी प्रमाण के पूरे सदन में लगा-लगा कर बताते रहे,परंतु महापौर श्रीमती मालती राय उनकी पूरी महापौर परिषद,परिषद के अध्यक्ष सहित सभी लोग जोनल अधिकारी,सफाई कर्मचारी सहित अन्य अधिकारियों के खिलाफ तो आरोप लगाते रहे,परंतु अपनी बगल में हाथ डाल कर दंभ के साथ बैठे नगर निगम आयुक्त के खिलाफ सीधे एक शब्द भी बोलने की हिम्मत नहीं हुई, इसके विपरीत देख लेना चाहिए,ध्यान देना चाहिए आपको व्यवस्था बनाना चाहिए ,आगे ऐसा न हो देख लेना, ऐसा नहीं चलेगा वगैरा वगैरा व्यवहारिक शब्दों का उच्चारण करते रहे। परिषद की बैठक हॉल में लगे सभी माईक भी 9० प्रतिशत खराब थे ,महापौर हो या सदस्य अपने हाथों में माईक ले-ले कर संबाद कर रहे थे मानों किसी वन ग्राम में पंचायत की सामान्य बैठक हो।
अब प्रश्न यह उठता है कि भोपाल कलेक्टर हो अथवा नगर निगम आयुक्त हो या संभाग में बैठे हुए राजस्व आयुक्त क्या इनको मध्य प्रदेश शासन के सामान्य प्रशासन विभाग ने जनधन के खुर्दबुर्द करने के लिए या पद के दुरुपयोग करने के लिए अथवा अपनी निगरानी में कोई भी प्रशासनिक अपराध को निरन्तर होते रहने के लिए ,गंभीर प्रशासनिक अपराधों मामलों को आंख पर पट्टी बांधकर देखने के लिए पदस्थ किया है? क्या कारण है कि मध्य प्रदेश के कलेक्टर रहे अनुराग जैन आज मध्य प्रदेश शासन के मुख्य सचिव है और मध्य प्रदेश के मुखिया,मोदी के चहेते डॉक्टर मोहन यादव मुख्यमंत्री हैं। मुख्यमंत्री के पास ही सामान्य प्रशासन विभाग है, बावजूद इसके भोपाल राजधानी में बैठे हुए
अधिकारियों के संरक्षण में सरे आम जन धन की कूट रचित तरीके से लूट की जा रही है,यह कोई व्यक्तिगत आरोप नहीं है बल्कि चुने हुए जनप्रतिनिधियों और राज्य शासन की एजेंसी नगर निगम के अधिकारियों कर्मचारियों के बजट सम्मिलन में सार्वजनिक रूप से चर्चा का विषय रहा है अर्थात यह समझा जा सकता है कि प्रशासनिक अपराध के मामले में मुख्य सचिव के नियंत्रण से बाहर हैं । ऐसा प्रतीत होता है कि निगम परिषद के कर्मचारी हो अथवा मध्य प्रदेश में चुने हुए जनप्रतिनिधि, इन भारतीय प्रशासनिक सेवा अधिकारियों ने अस्तित्वहीन समझ लिया है, यही स्थिति बनी रही तो इसके गंभीर परिणाम भी हो सकते हैं । जब जनप्रतिनिधियों की ही दयनीय स्थिति है तो आम जनता किस पर भरोसा करेंगी। जनप्रतिनिधि सुबह से शाम तक जनता के बीच रहते हैं,जनता के
प्रति जवाबदेही उनकी होती है,परंतु कोई भी प्रशासनिक अधिकारी ,किसी सामान्यजन से मिलना पसंद नहीं करता हैं और न जनता के बीच जाना पसन्द करता हैं ना उनकी कोई जनता के प्रति जवाबदेही होती है। इस असामान्य होती स्थिति को सत्ताधारी दल भारतीय जनता पार्टी और मध्य प्रदेश शासन को गंभीरता से लेना चाहिए अन्यथा समाज में जनआक्रोश बढ़ना अवश्यंभावी है।
-writer - pt.s.k. Bhardwaj